बहुत दिन हुए कोई गीत कायदे से नहीं सुना
बहुत दिन हुए
नहीं पढ़ी कोई नई-सी कविता
बहुत दिन हुए चाँद को निहारे
तारों को गिने
निरुद्देश्य भटके
पुरानी किताबों की धूल झाड़े
बहुत दिन हुए नहीं किया कुछ मनमाफिक
बहुत दिन हुए खुद से बतियाये
अब तो बस
बीते जाते हैं दिन
पल -छिन
गिन -गिन ...
आज मन है कि एक पसंदीदा गीत को साझा किया जाय. अब ऐसे समय में जब चारो तरफ लगभग भुस भरा हुआ है और जिसे देखिए वही अपने ही भीतर के हाहाकार से हलकान है और दोष बाहर के दबावों , प्रलोभनों को दिए जा रहा है तब अपने मन की कुछ कर लेना , अपने वास्ते एकांत के दो पल तलाश लेना कितना -कितना कठिन हो गया है ! औरों की बात क्या करूँ ? मैं किसी के मन के भीतर तो पैठा नहीं हूँ !
फिर भी.....
.. तो आइए आज सुनते हैं ज़िला खान का गाया यह गीत - ताना न मारो .. उम्मीद है पसंद आएगा..
बहुत दिन हुए
नहीं पढ़ी कोई नई-सी कविता
बहुत दिन हुए चाँद को निहारे
तारों को गिने
निरुद्देश्य भटके
पुरानी किताबों की धूल झाड़े
बहुत दिन हुए नहीं किया कुछ मनमाफिक
बहुत दिन हुए खुद से बतियाये
अब तो बस
बीते जाते हैं दिन
पल -छिन
गिन -गिन ...
आज मन है कि एक पसंदीदा गीत को साझा किया जाय. अब ऐसे समय में जब चारो तरफ लगभग भुस भरा हुआ है और जिसे देखिए वही अपने ही भीतर के हाहाकार से हलकान है और दोष बाहर के दबावों , प्रलोभनों को दिए जा रहा है तब अपने मन की कुछ कर लेना , अपने वास्ते एकांत के दो पल तलाश लेना कितना -कितना कठिन हो गया है ! औरों की बात क्या करूँ ? मैं किसी के मन के भीतर तो पैठा नहीं हूँ !
फिर भी.....
.. तो आइए आज सुनते हैं ज़िला खान का गाया यह गीत - ताना न मारो .. उम्मीद है पसंद आएगा..