* धनतेरस, दीपावली ,गोवर्धन पूजा और आज भैया दूज के साथ छुट्टियों के सिलसिले पर विराम लगा लगा है। इस बीच कई सारे काम किए - घर बाहर की सफाई से लेकर कबाड़ की छंटाई तक. कुछ फाड़ा,फेंका और पहले से भी बहुमूल्य लगा सो उसे जतन से संभाल लिया. इस किस्म के कबाड़ का एक नमूना देखने की इच्छा हो तो 'कबाड़खाना' का एक फेरा लगा लें.
*पिछला सप्ताह मेरे लिए दीपावली अवकाश के साथ एक तरह का ब्लगावकाश भी रहा। बहुत सारे मित्रों - शुभचिन्तकों ने शुभकामनायें - बधाई दीं- उन्हें धन्यवाद और आभार ! पता चला कि कुछ मित्रों का जन्मदिन पड़ा था और मैं देर से जान सका.खैर देर से ही सही बधाई हो बधाई !
*अब धीरे धीरे ब्लाग पर लिखना फिर शुरू -सा हो रहा है परंतु क्या लिखा जाय? क्या आप के साथ भी अक्सर ऐसा होता है कि उत्सव के बाद उदासी -सी उपजती है।अपने आसपास, देश - दुनिया - जहान की उठापटक के बीच उत्सवधर्मिता के जो चंद पल यथार्थ की अकुलाहट को अवरुद्ध कर देते हैं वे कितनी जल्दी व्यतीत हो जाते हैं. सुगंध की तरह उड़ जाती है उनकी उपस्थिति.
*खैर अपने इस ब्लागिस्तान में पिछले सप्ताह भर से विचरण नहीं-सा ही हुआ है।इस बीच निश्चित रूप से बहुत कुछ ऐसा आया होगा / आया है जिससे गुजरना है-पढ़ना , सुनना, देखना है और मन रमने पर अपनी राय भी जाहिर करनी है.
*आज बस इतना ही. हाँ, दीपावली पर मिले तमाम संदेशों के बीच एक बहुत प्यारा-सा ई-मेल बिलासपुर (छतीसगढ़) के शिवा कुशवाहा जी का मिला जिसे सबके साथ बाँटने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ -
Look at these enthusiastic little lamps!
They are determined to crush the arrogance of the moon
and
have come forward to fight against the darkest night of the month।
Hats off to this bubbly confidence !!!
Wish you and your family an illuminating Deepawali !
* 'कर्मनाशा' पर आने वाले और इसका लिंक देने वाले सभी मित्रों के प्रति आभार !
*चलते -चलते अर्ज है 'मोमिन' का यह शे'र -
*चलते -चलते अर्ज है 'मोमिन' का यह शे'र -
ये उज्रे - इम्तहाने जज्बे -दिल कैसा निकल आया,
मैं इल्जाम उसको देता था कुसुर अपना निकल आया.