बुधवार, 28 मई 2008

हिन्दी ब्लाग की बनती हुई दुनिया में

नमस्ते ,
बहुत लंबे समय के बाद ब्लाग पर आया हूं । इस बीच बस ऐसा ही रहा .काम-काज से फ़ुरसत नहीं मिल सकी ।वैसे भी आज यहां का माहौल देखकर लग रहा है कि एक नई बनती हुई विधा को लेकर भाई-बहन लोग कुछ ज्यादा ही परेशान हो रहे हैं।हर नई चीज अपने संग नये वाद-विवाद लेकर आती है,तभी तो संवाद का रास्ता खुलता है।माफ़ करे मैं विद्वान नहीं हूं कि लंबी फ़ेंक सकूं।मुझे तो अपने छोटे से गांव की छोटी सी कुटिया में बैठकर कुछ लिखना है।शुक्र है संचार के साधनों का कि गंवई लोगों के लिए भी ब्लाग की बनती हुई दुनिया में अपनी बात कहने का अवसर मिला है।खैर,अपने
प्रिय
कवि इब्ने इंशा की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं -

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का
सुबह का होना दूभर कर दें रस्ता रोक सितारों का

झूठे सिक्कों में भी उठा देते हैं अक्सर सच्चा माल,
शक्लें देख के सौदा करना काम है इन बंजारों का

अपनी ज़ुबां से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग,
तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का

एक ज़रा सी बात थी जिस का चर्चा पहुंचा गली गली,
हम गुमनामों ने फिर भी एहसान न माना यारों का